"असली हकदार "
"असली हकदार "
आज त्रिपाठी जी को "महिला कल्याण समिति" की ओर से एक निमंत्रण- पत्र आया।वैसे तो त्रिपाठी जी एक अध्यापक हैं लेकिन शौकिया तौर पर अखबारों में भी लिख देते हैं।विभिन्न विषयों पर लेख, विशेषतः समाज में महिलाओं की स्थिति एवं उनसे जुड़ी समस्याओं पर।इस वजह से उनका समाज में, विशेष तौर पर महिलाओं के बीच सम्मान है।
वे किसी किसी सामाजिक और राजनीतिक संस्था के मंच की शोभा भी बढ़ा देते हैं।समाज सेवा में रुचि है यानि कि एकदम व्यस्त दिनचर्या।उनकी पत्नी भी अध्यापिका हैं।दोनों बच्चे पढ़ते हैं।पत्नी नौकरी के साथ-साथ घर भी संभालती हैं और त्रिपाठी जी की इस व्यस्तता के चलते वह पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियां भी निभाती हैं लेकिन त्रिपाठी जी से कभी कोई शिकायत नहीं करतीं ।
"महिला कल्याण समिति "शहर की कुछ चुनिंदा महिलाओं को महिला दिवस पर सम्मानित कर रही थीं और समाज सेवक के नाते उन्हें मुख्य अतिथि के तौर पर बुला रही थी।त्रिपाठी जी तैयार होकर जब वहां पहुंचे तो अच्छी खासी चहल-पहल थी।बहुत सी महिलाएं पूर्णतया सजी-धजी वेशभूषा में यहां-वहां घूम रही थीं।त्रिपाठी जी मंच पर आसीन हो गए और अनेक अतिथि गण भी वहां उपस्थित थे। संचालक महोदय ने संचालन आरंभ किया और बहुत से वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
अलग-अलग क्षेत्र की बहुमुखी प्रतिभा की धनी महिलाओं का मंच पर सम्मान किया जा रहा था। कुछ का तो त्रिपाठीजी ने नाम ही नहीं सुना था।बीच-बीच में महिलाओं के सम्मान में कसीदे पढ़े जा रहे थे,तभी उनकी निगाह पड़ोसन कौशल्या देवी पर पड़ी ।बड़ी ही ठसक के साथ मंच पर आ रही थीं। कॉलोनी में उन्हें पीठ पीछे लोग बुराइयों की खान कहते थे।परिवार में रोज लड़ाई- झगड़े पड़ोसियों से दुर्व्यवहार उनकी खासियत थी।उनका ज्यादातर समय घर से बाहर सभा सोसाइटी में गुजरता।
त्रिपाठी जी के जैसे मस्तिष्क के बन्द द्वार खुल गए, कौशल्या देवी जैसी महिला को सम्मान???
समारोह का समापन होते ही वह बाजार गए और पत्नी के लिए एक सुंदर सी साड़ी खरीदी फिर गुलाबों का एक गुलदस्ता साथ में महकते गजरे जो उनकी पत्नी को कभी बहुत पसंद थे लेकर घर की ओर प्रसन्न मुद्रा में चल दिये।
उनके द्वारा सम्मान की असली हकदार महिला तो उनके अपने ही घर में मौजूद है,यह सोचते हुये उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।