Priyanka Saxena

Children Stories Tragedy Children

4.5  

Priyanka Saxena

Children Stories Tragedy Children

अनोखी सजा

अनोखी सजा

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सुबह सुबह पड़ोस के फ्लैट से आती रोने की आवाज़ से सुजाता की नींद टूट गई। रूम की लाइट जलाकर देखा, चार बज रहा था। किसी अनहोनी की आशंका से सुजाता स्लीपर डाल कर, मास्क पहनकर तुरंत ही पड़ोस की घंटी बजाने से स्वयं को रोक न सकी।

सुजाता को इस शहर में आए कुछ तीन महीने ही हुए हैं, मार्च में आते ही लाॅकडाउन हो गया था। इस फ्लोर पर चार फ्लैट हैं परंतु लाॅकडाउन लगने की खबर से पहले ही बाकी दो फ्लैट के लोग अपने गांव चले गए थे। बाकी पूरी बिल्डिंग में कुल जमा आठ-दस फैमिली रह गईं थीं। सुजाता की जान-पहचान नहीं थी इस वजह से ज्यादा जानती नहीं है । वैसे भी कोविड-१९ के कारण कोई किसी के घर तो आता-जाता है नहीं।

सुजाता के घर में उसके पति मोहित , सास उमा जीऔर वह स्वयं रहते हैं, अभी एक साल पहले उसकी शादी मोहित से हुई है। कोरोना के चलते इस नये शहर में सास-बहू अपने आपस में ही मस्त रहती हैं। मोहित का भी वर्क फ्राॅम होम चल रहा है।

खैर, इस वक्त सुजाता ने यह सब न सोचते हुए डोरबेल दबा दी। दरवाजा तेरह-चौदह वर्ष के मास्क लगाए बच्चे ने खोला।

सुजाता ने कहा," बेटा, मैं सामने वाले फ्लैट में रहती हूॅ॑। आपके घर से रोने की आवाज़ आ रही थीं, सब ठीक तो है ना? मुझे बताओ, शायद मैं कोई मदद कर सकूं!"

बच्चे ने कहा," हां, आंटी मैंने आपको देखा है, आप सामने वाले फ्लैट में रहती हो।"

"आपका नाम क्या है और अपनी प्राब्लम बताओ। आपके मम्मी पापा कहां हैं?"

पूछते ही बच्चे का रोना छूट गया। सिसकते हुए बोला," आंटी, मैं समर हूॅ॑। मम्मी पापा को कल बुखार आ गया था तो कल दिन में ही उन्हें हाॅस्पिटल में एडमिट करना पड़ा। मेरी चाची आने वाली थी मेरे पास, परंतु शाम को चाचा कोरोना पाज़िटिव हो गए जिसके कारण वह अब नहीं आ सकती।"

"ओहो, तो ये बात है बेटा। "

"आंटी मैं अकेला महसूस कर रहा था, बस काम चलाऊ नाश्ता बनाना जानता हूॅ॑। पता नहीं, मम्मी पापा को याद कर रोना आ गया। मैं बहुत शर्मिन्दा हूॅ॑, मेरी वजह से आपकी नींद खुल गई। साॅरी आंटी।" समर बोला

" नहीं बेटा, साॅरी की क्या बात है? हां, गलती तो आपने की है और सजा भी मिलेगी। गलती यह है कि इतने पास होते हुए भी अपने हमें नहीं बताया, पड़ोस में रहते हैं हम। सजा यह है कि अब जब तक मम्मी पापा नहीं आ जाते तब तक आंटी के हाथ का खाना खाना पड़ेगा।" सुजाता ने अपनी आवाज़ को यथासंभव कठोर बनाते हुए कहा

"नहीं आंटी, मैं मैनेज कर लूंगा।"

"बेटा डरो मत मेरी बहू अच्छा खाना बनाती है, मैं भी तुम्हारी पसंद का बना दिया करूंगी। उमाजी की आवाज़ सुन दोनों चौंके, पीछे से उमा जी कब आ गईं थीं उन लोगों को पता ही नहीं चला।

समर की ऑ॑खों से आंसू बहने लगे।

अब तक मोहित भी आ चुका था। मोहित ने कहा," बेटा, कोई भी काम हो या बात हो डोरबेल दबा देना। फोन नंबर भी नोट कर लो, काॅल कर देना। परेशान मत हों।"

इस तरह से समर को हौसला दिया सबने और उसके खाने पीने का ध्यान सुजाता रखने लगी। सुजाता, उमा जी और मोहित ने समर का ख्याल घर के बच्चे की तरह रखा।

पंद्रह दिन बाद जब समर के मम्मी पापा हाॅस्पिटल से पूरी तरह ठीक हो कर लौटे तो उन्होंने सुजाता, उमा जी और मोहित का हृदय से आभार व्यक्त किया।

सुजाता ने कहा कि हम पड़ोसी हैं और इसमें संकोच की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। आप हमको बता कर जाते तो बच्चा परेशान नहीं होता।

दोनों परिवारों में अब गाढ़ी दोस्ती हो गई।

दोस्तों,सच में यदि हर कोई ऐसे ही दुख तकलीफ़ और खासकर इस महामारी में एक-दूसरे के काम आने लगे और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाए तो इस महामारी पर हम पार पा लेंगे।


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