अम्मा
अम्मा
“मंहगाई बहुत बढ़ गयी है क्या खायें और कैसे लाये।” आज के युग व कलयुगी सरकार की नीतियों को कोसते हुये वो विषवमन कर रहे थे। कोने में बैठी अम्मा सब कुछ शांत भाव से सुन रहीं थी। बोलते बोलते थक कर आँख उठा कर अम्मा की ओर देखा तो उनको शान्तचित्त मुस्कुराते हुये पाया। पता था हर बात का जवाब अम्मा के पास होगा इसी लिये तो अपनी सारी भड़ास वो अम्मा के सामने ही निकालते थे।
पर आज वो बोल ही बैठे। ”इसमें मुस्कराने की क्या बात है। कितना तो मुश्किल समय आ गया है। प्याज टमाटर जो सबसे जरूरी है उसके दाम आसमान छू रहें हैं। इतनी अधिक रासायनिक खादों का प्रयोग हो रहा है सब्ज़ियों में कोई स्वाद नहीं आ रहा है रासायनिक खाद युक्त सब्ज़ियों को खाकर लगता है जैसे विषपान कर रहे हों कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को खुलेआम दावत मिल रही है और तुम मुस्करा रही हो।”
“देखो बेटा पहले के समय में वर्ष भर हरी सब्जी व अनाज नहीं मिलता था लोग उनको सुखा कर हवाबन्द डिब्बों में भर कर रख लेते थे। कमी होने पर या बेमौसम जरूरत होने पर प्रयोग में लाते थे। मौसम बेमौसम हर समय ताजी चीज़ें मिलती ही नहीं थी तो महँगा होने का कोई रोना ही नहीं रोता था पर हर चीज बदले रूप में घर में ही सुरक्षित करके रखी मिल जाती थी। मेंथी, पोदीना प्याज, लहसुन,अदरक ,मिर्च व टमाटर सभी को अघिकतता के समय सुखा कर रखा जा सकता है। और अन्य सब्ज़ियों को भी ऐसे ही या दालों संग मिला कर बड़ियो के रूप में रखा जा सकता है इससे एक तो ताजी चीज़ों की बाजार में माँग कम होगी दूसरे सबको स्वाद बदल कर खानें को मिलेगा ।”
“जब बे मौसम की चीज़ों की माँग घटेगी किसान भी विषैली रसायनों का प्रयोग अधिक उपज के लिये नहीं करेगा और हम सब अनजाने विषपान से स्वत: ही बच जायेंगे।”
आज फिर पुरानी यादों से नये जमाने को नयी राह अम्मा नें दिखा दी थी।
