Madhu Vashishta

Others

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अकेलेपन के एहसास का रिश्ता

अकेलेपन के एहसास का रिश्ता

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भावना जी की नींद खुली तो उन्हें बेहद प्यास लग रही थी। प्लास्टर और ऑपरेशन के कारण वह हिल भी नहीं पा रहीं थीं। बिस्तर से तो उठने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद ना थी ।पैर में भी बहुत दर्द हो रहा था। सावित्री भी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही थी। शायद वह भी अंदर पार्लर की और कॉस्मेटिक शॉप की की सफाई करवा रही होगी। नीता की आवाज तो आ रही थी लेकिन उससे पानी मांगने में शर्म या-----------?

          नीता मोंटू के साथ पहले स्कूल और फिर कॉलेज में भी साथ ही पड़ी थी। मोंटू की दोनों बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी और मोंटू की शादी के लिए भावना जी बड़े-बड़े सपने सजाए बैठी थी। यूं भी भावना जी के संपन्न परिवार को देखकर एक से एक बड़े घरों के रिश्ते भी आ रहे थे। शहर की सबसे बड़ी मार्केट में रेडीमेड गारमेंट्स की सबसे बड़ी दुकान मोंटू के पापा की थी। जब से पापा को दिल का दौरा पड़ा था तब से उनकी बहुत इच्छा थी कि मोंटू भी दुकान में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं क्योंकि बढ़ते हुए काम के साथ तालमेल बिठाने में उन्हें बहुत परेशानी हो रही थी और वह बेहद थक जाते थे। लेकिन उनके आशिक मिजाज बेटे अपना पूरा समय नीता के साथ घूमने में ही बिताते थे। पापा को तो ज्यादा एतराज नहीं था लेकिन बेटे की इच्छा के आगे बेमन ही भावना जी को झुकना पड़ा और नीता बहू बनकर घर में आ गई। मनसे कभी भी भावना जी ने उसे बहु स्वीकार नहीं किया। शादी के बाद मोंटू को भी दुकान में जाना पड़ा और पापा की दिनोंदिन बिगड़ती तबीयत के कारण मोंटू को अक्सर दुकान में देर हो जाया करती थी। सारे काम करने के बावजूद भी भावना जी नीता से ना तो कभी खुश होती थी और ना ही उनकी दोनों विवाहित बेटियां अपने घर में उसे मन से स्वीकार पाई। इकलौते भाई से बहुत कुछ पाने की चाह मन की मन में ही रह गई।

           मोंटू का इश्क का भूत तो 15 दिन में ही उतर चुका था और अब हर वक्त घर में काम करके तनाव झेलती हुई नीता की शक्ल भी उसे बदरंग सी ही लगने लगी थी। बाकी का भड़काने का काम घर में भावना जी और उनकी बहनें कर ही देती थी। कुछ ही महीनों बाद 1 दिन पापा को एक और दिल का दौरा आया और वह भी इस दुनिया को छोड़ चले। भावना जी उनके दुनिया से असमय कूच करने का जिम्मेदार नीता के मनहूस कदम को ही मानती थी ।अब यदा-कदा नीता पर उनका हाथ भी उठने लगा था।

समयाभाव कहो, या कि माता और बहनों के हर वक्त सिखाने का असर, या अत्यंत तनाव झेलती नीता के चेहरे का बेरौनक होना।घर से भागकर और दुनिया से लड़ कर जिस लड़के से नीता शादी के लिए तैयार हुई थी वह लड़का तो कहीं था ही नहीं । उसे भी अब नीता से सिवाय तलाक के और किसी चीज की कोई भी इच्छा न थी। अंत में नीता को झुकना ही पड़ा।

             तलाक की एवज में उस संपन्न परिवार ने नीता को एक छोटा सा घर भी दिया। उस दो कमरों के मकान के एक कमरे में ही नीता ने अपने सारे गहने बेचकर एक कुर्सी और मेज लाकर छोटा सा ब्यूटी पार्लर बनाया। खुद भले ही वह कितनी भी बदरंग हो लेकिन उसके हाथों मैं ऐसा जादू था कि वह किसी को भी बहुत सुंदर बना देती थी। धीरे धीरे उसका पार्लर चल निकला और उसने कुछ कॉस्मेटिक्स भी रख कर बेचने शुरू कर दिए थे। यह उसकी मेहनत का ही फल था कि उसने अपनी सोसाइटी में ही एक बड़ा घर ले लिया था जिसमें कि ब्यूटी पार्लर और कॉस्मेटिक्स की शॉप के लिए अलग-अलग कमरे थे। हालांकि उससे दोबारा शादी के इच्छुक भी बहुत से दोस्त मिले लेकिन नीता ने साफ इनकार कर दिया क्योंकि उसके ख्याल से उसने पहला प्यार भी बहुत ईमानदारी से करा और उससे ज्यादा प्यार वह अब किसी को भी देने के लायक भी नहीं थी उसने अपने काम को ही अपना लक्ष्य बनाया और बिना किसी शिकायत के अपने काम को ही आगे बढ़ाती रही।

            आशिक मिजाज मोंटू जी ने आदतानुसार दुकान में खरीदारी करने आई लड़कियों में ही अपने नई प्रेमिका की तलाश शुरू कर दी। मोंटू जी के कारण दुकान की साख दिन प्रतिदिन गिरती ही जा रही थी यह तो जब दुकान बेचने की ही नौबत आई तो सामने वाली दूसरी कपड़ों की दुकान के मालिक राघवजी ने उनकी दुकान को खरीदने के साथ-साथ उनको एक ऑफर यह भी दिया कि वह इस दुकान को अपनी इकलौती बेटी के नाम करेंगे अगर वह चाहे तो उसके साथ मोंटू जी की शादी भी कर सकते हैं। दुकान को बचाने की एवज में यह रिश्ता भावना जी को मंजूर था। नई बहू सीमा के आने के बाद भावना जी को उसके हर व्यवहार से नीता की याद आती थी।

           मोंटू जी ने तो शायद नीता को कम अपमानित किया हो लेकिन सीमा ने तो कभी उन्हें सम्मान ही नहीं दिया। भावना जी जो यदा-कदा नीता को मारने में भी संकोच नहीं करती थी अब कुछ बोलती तो भी सोच कर ही। जाने कब सीमा का मूड खराब हो जाए। दोनों बहने भी सीमा की पसंद की ही बात करना पसंद करती थी। जब भी मन करता था सीमा अपनी दुकान में आकर बैठ जाती थी। मोंटू जी की अपनी दुकान में ही एक नौकर से ज्यादा की औकात नहीं थी, और सीमा से कुछ कहने की किसी की हिम्मत भी नहीं थी।

        रह-रहकर अब सबको नीता की याद तो आती थी लेकिन---------? अभी कुछ दिन पहले ही जब कामवाली छुट्टी पर थी, भावना जी अकेली ही सारे घर के काम को निपटाने में व्यस्त थी। सीमा का खाना तो दुकान में ही उसके माता पिता अक्सर फोन करने पर भिजवा ही देते थे यूं ही न सीमा को कोई अपना काम लगा और ना ही किसी ने उससे कहा। फर्श पर पानी बिखर जाने से भावना जी का पैर फिसला और वह जमीन पर आ गिरीं। दुकान पर इतने फोन लगाएं लेकिन जब किसी ने भी नहीं सुने तो पड़ोसी उसे अस्पताल लेकर गए। अचानक गिरने से उसके कूल्हे की हड्डी टूट गई थी, ऑपरेशन के बाद उसे घर भेज दिया गया। बिस्तर पर लेटे लेटे हालांकि उन्हें नीता के प्रति किए हुए अपने व्यवहार की याद तो बहुत आती थी कि जब बुखार में खाना बनाने के लिए नीता उठ नहीं पाई थी तो उन्होंने बेइंतेहा गालियां बकते हुए उसके बाल खींच कर थप्पड़ भी मारे थे। उसके साथ भी तो ऐसा ही सलूक हो रहा था। अटेंडेंट लगभग 10:00 बजे आती थी, शाम को 7:00 बजे जाती हुई भावना जी को डाईपर लगा जाती थी। पास की ही टेबल पर पानी भी रख जाती थी। सीमा को तो मानो उनसे कोई मतलब ही नहीं था। कई बार दुखी होने पर मोंटी भी मां को कह जाता था कि नीता और उसके बीच लड़ाई का कारण आप ही थीं। दोनों बहने भी यदा-कदा मिलने तो आ जाती थीं, मां के साथ मिलकर सीमा की बुराइयां तो कर जाती थी लेकिन किसी ने भी उन्हें अपने साथ जाने के लिए कभी नहीं कहा था।

        एक दिन जब उनकी अटेंडेंट भी नहीं आई तो रोते हुए उन्होंने जब सीमा को कहा कि अगर नीता होती तो मुझे इस हालत में तो कभी नहीं छोड़ती, गुस्से में सीमा भी चिल्लाई, अगर वह इतनी ही अच्छी थी तो तलाक क्यों करवाया? कहो तो मैं भी मोंटू को तलाक दे दूं, वह तो इतने बड़े घर में खुशी से रह रही है, मेरे नाम भी यह घर कर दो और यहां से निकल जाओ मैं ही कौन सा कोई तुम्हें तंग करूंगी।

          सीमा के दुकान पर जाने के बाद भावना जी का दुख असहनीय था। उनकी अटेंडेंट ने 11:00 बजे आना होता था, यह लोग घर भी खुला छोड़ जाते थे ताकि जरूरत पड़ने पर भावना जी चिल्लाकर पड़ोसियों के नौकर को बुला सकें। उस दिन जैसे ही 10:00 बजे दरवाजा खुला तो वह देखकर हैरान हो गईं। सामने नीता खड़ी थी। उनके घरेलू नौकर ने नीता को भावना जी के बारे में बताया था।

           नीता को देखकर भावना जी की आंखों से अश्रु धारा बह गई और उनके हाथ स्वत: ही आपस में जुड़ गए। नीता ने उनका सिर प्यार से सहलाया और कहा जो लोग जिम्मेदार होते हैं वह सब के प्रति ही जिम्मेदार होते हैं मुझे पता है मोंटू जी किसी के भी सगे नहीं है। आप चाहें तो मेरे साथ चल सकती हो। ऐसा कहकर एंबुलेंस बुलवाकर नीता भावना जी को अपने घर ले आई।

      भावना जी की जब नींद खुली और उन्होंने सबको अपने काम में व्यस्त देखा तो वह इतनी भी हिम्मत ना जुटा पाई कि नीता को अपने पास बुला ले, तभी नीता कमरे में आई और प्यार से उनका सर सहलाती हुई बोली "मम्मी आपने मुझे बुलाया क्यों नहीं?" "बेटा किस रिश्ते से तुझे इतना परेशान कर रही हूं अब तो मुझे भी नहीं पता।" हंसते हुए नीता बोली "मम्मी यह रिश्ता हमारा किसी रिश्ते का मोहताज नहीं है यह तो जरूरत और अकेलेपन का रिश्ता है, आज आप भी मुझे उतनी ही अकेली और जरूरतमंद लगी जितनी किसी समय में मैं थी, आपके व्यवहार ने हीं तो मुझ में इतना आत्मविश्वास दिया और अकेले रहने की हिम्मत दी, आपको सहारा देते हुए मुझे सदा यही एहसास होगा कि समय सदा एक सा नहीं रहता। आज हम दोनों का एक ही दुख है और उस दुख का एक ही यह रिश्ता है। मुझे पता है कि अब आप मुझसे बहुत प्यार करती हो इसलिए कभी किसी तरह का संकोच ना करना मेरा रिश्ता मोंटू जी से टूटा है आप अभी मेरी मां ही हो।"

     

     



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