अचीवमेंटस
अचीवमेंटस
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"हाँ ..हाँ अपने बूते पे ये मुकाम हासिल किया है, कोई सिफारिशी नहीं हूँ मैं समझे, हर रोज़ का डायलॉग था ये शगुन रस्तोगी का, दफ्तर में सब पक चुके थे सुन-सुन के।
बड़ा घमंड था शगुन को अपनी अचीवमेंट्स पर, रोज़-रोज़ मिस्टर रस्तोगी का पुरुष दम्भ भी ना सह पाया और वो भी,
आज वो अकेली रह गयी, अपनी अचीवमेंट्स के साथ।
