आरक्षण
आरक्षण
राहुल खुशी से चाहकता हुआ घर आया और माँ से बोला "माँ आपका सपना सच हुआ मैंने अपने जिले में टॉप किया है जिस दिन का तूने बरसों से सपना सजाया था आज पूरा हुआ बस अब जल्दी से मेरी नौकरी लग जाए तो मैं आपको सारे सुख दूँगा।"
माँ भी खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी उसकी मेहनत जो रंग लाई थी।
राहुल के पिता की गुजर जाने के बाद कैसे उसने घर घर काम करके और दिन-रात सिलाई करके राहुल का पालन पोषण किया आज उसे अपनी परवरिश पर नाज हो रहा था।
अब सिलसिला शुरू हुआ राहुल की नौकरी के लिए इंटरव्यू और एग्जाम का।
पर हाय रे किस्मत !!!और अपने देश का अंधा कानून जहां योग्य उम्मीदवार पीछे रह जाते हैं और अयोग्य उम्मीदवार आरक्षण के दम पर आगे बढ़ जाते हैं। राहुल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ !
कितने अरमान थे उसके कि आज वह खाली हाथ घर नहीं लौटेगा पर शायद आरक्षण का काला नाग यहां भी उसकी ख़ुशियों को डस गया और वह मायूस फटी जेब लेकर ऑफ़िस से बाहर निकलता हुआ यह सोचने पर मजबूर हो गया की एक तरफ तो हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं सांप्रदायिक एकता ... सद्भावना इत्यादि की पर पढ़े लिखे सुयोग्य उच्च वर्ग के युवाओं के प्रति हमारे देश में कोई सद्भावना नहीं ।
क्यों उन्हें अपने हक का पूरा आसमाँ नहीं मिलता और यही सोचते हुए थके कदमों से राहुल घर वापस लौट रहा था कि आज माँ को क्या जवाब दूँगा?