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SANGEETA SINGH

Children Stories

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SANGEETA SINGH

Children Stories

आंसू

आंसू

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आंसुओं का क्या, किस बात पर आंखों से निकल कपोलों को चूम लें। कभी दर्द में आंसू आते हैं, तो कभी खुशी में।

आरव अब 12 साल का हुआ है, वह पापा से रोज जिद करता, पापा अब तो मेरे लिए भी साइकिल खरीद दो, मेरे दोस्त, बहुत पहले से छोटी से लेकर बड़ी साइकिल चलाते हैं, लेकिन आपने अब तक मुझे एक साइकिल भी लाकर नहीं दी।

राज (आरव के पापा) अच्छे पद पर कार्यरत थे, पैसे की कोई कमी नहीं थी, लेकिन कंजूस एक नंबर के, उनसे पैसे निकलवा खर्च करा पाना टेढ़ी खीर थी।

आरव पहले छोटी साइकिल की मांग करता, वो बस मांग में ही शामिल रहा, कभी पूरा नहीं हुआ।


राज का कहना था अभी छोटी लाकर दूंगा, और तुम एक दो साल में बड़े हो जाओगे, और साइकिल छोटी, इसलिए थोड़े बड़े हो जाओ।

लेकिन अब आरव ने अपनी मांग पुरजोर शुरू कर दी।

अनशन, भूख हड़ताल जितने भी हथकंडे अपना सकता था, उसने अपनाया। आखिरकार, कंजूस पिता का दिल पिघला।


उस दिन आरव बहुत खुश था।आज पापा ने उससे वादा किया था कि, वो साइकिल लेने जाएंगे। आरव जल्दी जल्दी तैयार हुआ, और पापा के साथ साइकिल की दुकान पर पहुंचा, पापा ने बड़ों वाली साइकिल पसंद की, जबकि आरव नई जेनरेशन की साइकिल खरीदना चाह रहा था, लेकिन विरोध नहीं कर सका।

साइकिल ले ली गई, अब वो उसे देख देख खुश हो रहा था आज शनिवार था। इसलिए अगली सुबह स्कूल की छुट्टी है वह खूब साइकिल चलाएगा, ये सोच कर उसे रात भर नींद नहीं आ रही थी।


आरव सुबह उठा, उसने पापा को साथ लिया। पापा ने उसे कैंची, बैलेंस, जिग जैग, चलवाकर पूरा बेसिक सीखा दिया। अब जरूरत थी सिर्फ प्रैक्टिस की।

अब स्कूल से आने के बाद वह रोज साइकिल चलाने का अभ्यास करता, पहले सुनसान रास्ते में ले जाता, उसके बाद उसमे जब और आत्मविश्वास का इजाफा हुआ तो वह भीड़ भाड़ वाली सड़कों पर रफ्तार के साथ साइकिल लेकर भागता।

उमंग, जोश और खुशी इतनी ज्यादा थी, कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, बस महसूस किया जा सकता था।

लखनऊ, में कुछ सालों पहले लखनऊ महोत्सव लगा करता था। ये बहुत बड़ा आयोजन होता था, दूर शहरों, राज्यों की प्रसिद्ध चीजों के स्टॉल बड़े मैदान में लगाई जाती थीं।


आरव भी अपने मम्मी, पापा के साथ महोत्सव देखने गया। तरह तरह की चीज़े उसे लुभा रही थी। कहीं भूत, प्रेत के मुखौटे, बैलून, फूंक कर बबल निकालने वाला, सब कुछ उसके दिलचस्पी की चीजें थी उस महोत्सव में  ।

कुछ चीजों की डिमांड तो पापा, मम्मी ने पूरी की, बाकी दिल में बसी रही, उसका बालमन बार बार महोत्सव जाना चाह रहा था ।, वहां रास्ते में एक व्यक्ति चिल्ला चिल्लाकर, जादू दिखा रहा था और एक किताब ये दिखा कर बेच रहा था, कि ये जादू इस किताब की मदद से महज  2 मिनट में सीख सकते हैं ।

भूत प्रेत, परीकथा, जादू ये बच्चों की बहुत बड़ी कमजोरी होती है।

आरव मौका ढूंढ रहा था, घर से ज्यादा दूर नहीं था, महोत्सव स्थल। मम्मी से कई बार कहा, मम्मी चलो दिखा दो, मम्मी ने भीड़ का बहाना बनाया।


10 दिन हो गए थे, इस महोत्सव को। आज आखिरी दिन था। मुख्यमंत्री मायावती मेले का समापन करने आने वाली थीं। बहुत भीड़ उमड़ी थी।

आरव शाम को खेलने के बहाने, साइकिल लेकर पहुंच गया, महोत्सव स्थल। उसने साइकिल स्टैंड में लगा दी, और जादू वाले के पास खड़ा हो गया। जादू देखते, और किताब के मोल भाव करने में एक घंटा बीत गया। भीड़ बढ़ने लगी और अंधेरा भी।

मम्मी घर में चिंता कर रही थी। जब आरव को होश आया तो अंधेरा हो गया था, और भीड़ बहुत बढ़ चुकी थी। अब उसे घर जाना था, वह अपनी साइकिल लेने पहुंचा। लेकिन ये क्या????साइकिल नदारद। साइकिल वहां नहीं थी। बहुत खोजा, लेकिन दिखाई नहीं दिया।


उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा, उसे पापा के गुस्से का पता था, पापा उसकी जान ले लेंगे। भारी कदमों से घर की ओर बढ़ा,  लेकिन उसकी हिम्मत जवाब दे गई वह एक जगह जाकर बैठ गया और रोने लगा। इधर मम्मी को चिंता होने लगी, तब वे उसे खोजने निकल पड़ी।

महोत्सव स्थल से कुछ पहले आरव, धूल धूसरित, रोता हुआ बैठा मिला। मम्मी का कलेजा मुंह में आ गया, वे दौड़ कर उसके पास पहुंची क्या हुआ आरव?

मम्मी मेरी साइकिल खो गई।

क्या? कहां? महोत्सव से आरव ने बताया। लेकिन तुम गए क्यों थे, बिना बताए। मुझे जादू देखना था, और बुक लेनी थी आरव इतना कहकर सिसकने लगा।

मां तो मां, न डांटते बना, लेकिन पापा के गुस्से से वो भी वाकिफ थी। फिर से एक बार दोनों वहां गए, जहां साइकिल रखी थी। वह नहीं दिखी।

हार कर दोनों घर लौटे। पापा ड्यूटी के सिलसिले में बाहर थे, डरते डरते खबर बताई गई, पापा ने फोन पर ही डांटना शुरू किया।

अब कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। क्या होगा? पापा के आने पर .........।


रात के 9.30 बजे मम्मी ने एक बार फिर हिम्मत की, उसने कहा अब भीड़ कम हो गई होगी, चलो एक बार और देख आते हैं। दोनों फिर गए। सारी गाड़ियां जा चुकी थी, स्टैंड करीब करीब खाली था। आरव की आंखें अपनी साइकिल को ढूंढ रहीं थी। अचानक वह जोर से चिल्लाया, मम्मी मम्मी ने कहा क्या हुआ?

वह रो रहा था, मम्मी का दिल जोरों से धड़कने लगा। वह दौड़ कर उसके पास गई।

मम्मी अपनी साइकिल ......बस इतना ही बोल पाया, और सीने से लिपट गया।


हुआ ये था, उसने जल्दबाजी में अपनी साइकिल मोटरसाइकिल वाले स्टैंड में लगा दी। और बाद में वह साइकिल वाले स्टैंड में खोजने लगा था। रात में जब सारी गाड़ियां जा चुकी तो उसकी साइकिल साफ साफ दिखाई देने लगी। फिर वे घर वापस आए, घर में फोन की घंटी बार बार बज रही, पापा का 10 कॉल आ चुका था। मम्मी ने फोन कर बताया कि, साइकिल मिल गई ।सबने चैन की सांस ली।


इस घटना से आरव ने सीख ली, कि कभी बिना बताए जाना ठीक नहीं होता।

आज आरव 20साल का हो गया, लेकिन वो घटना आज भी जब याद आती है तो सब मिलकर हंसते हैं।



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