आंधी में वर्दी
आंधी में वर्दी
भरी दोपहर थी और ज्येष्ठ माह जिसे जेठ मास भी कहते हैं, का सूर्य बड़ा सगर्व अपना ताप धरा पर बरसा रहा था! सारा मौहल्ला इस तपन से बचने के लिए घरों में दुबका पड़ा था कि दूर से साईकिल पर वर्दी पहने एक व्यक्ति आता हुआ दिखा! साईकिल चलाने और वर्दी की साख बचाने हेतू जो कसरत करी गयी थी, दोनों का सामूहिक परिणाम, पसीना बनकर शरीर पे चू रहा था!
गृह-प्रवेश के पश्चात उसने सबसे पहले पसीने सुखाए और तत्पश्चात उसने सीधे ग़ुसलख़ाने की तरफ़ दौड़ लगाई! नहाने और वर्दी धोने के पश्चात उसने कपड़े जिसमें वर्दी शामिल थी, को सुखाने हेतू धूप में रख दिए और खाना बनाने के लिए वो सजीला जवान रसोईघर की तरफ़ चला गया! रसोई में खाना बनाने में मशगूल उस नवयुवक ने ध्यान नहीं दिया कि बाहर का मौसम अब बदलने लगा था, अम्बर पर अवस्थित सूर्य जो अब तक ताप बरसा रहा था वो अब धूल के गुबार में छुप चुका था और धुल-भरी आंधी चलने लगी थी!
खिड़कियाँ जब बजने लगी तो उस वर्दी-धारी की चेतना जागी! वो उस पकते हुए भोजन को यथावत छोड़कर अपने सूखते कपड़ों की तरफ़ दौड़ा! जब तक वो वहाँ पहुँचा, तब तक हवाओं का वेग बढ़ चुका था! उसने जैसे-तैसे कपड़े उतारे और जैसे ही वो वर्दी को उतारने चला कि वर्दी हवा के ज़ोर से कभी दाएं हो जाती तो कभी बाएं और वो वर्दी को इस वजह से उतार नहीं पा रहा था! बमुश्क़िल उसका हाथ जैसे ही वर्दी तक पहुँचा कि कहीं से हवा का तेज़ झोंका आया और वर्दी को उड़ाकर ले गया!
इस धूल-भरी आंधी में बमुश्क़िल आँखें खोलकर उसने उस दिशा में देखना शुरू किया जिस दिशा में उसकी वर्दी उडी थी! घबराहट से भरा चेहरा अचानक विस्मय से भर उठा! दरअसल उसके बगल में ही एक सरकारी विद्यालय में तिरंगा-आरोहित हो रखा था और उसी के ध्वज-खम्ब में से एक कड़ी निकली हुई थी जिस पर जाकर वो वर्दी अटक गयी थी! हवा चलती रही मगर तिरंगे वर्दी को थामे रखा और जैसे ही आंधी रुकी, नवयुवक ने अपनी वर्दी उतारी और मुस्कुराता हुआ चला गया!
देश में भी सियासी आंधी बहुत ज़ोरों पर है, हो सकता है वर्दी उस आंधी में कभी दाहिने ओर उड़े और कभी बायीं ओर उड़े मगर ध्यान रहे अंततः उसे तिरंगे के आगे ही थमना है!