शाम की चाय बना कर टेबल पर थोड़ी ठंडी होने को निर्मल जी ने रख दी और बाल्टी भरने नल खोल दिया। आँगन में लगे टेसू के वृक्ष को...
फिर दादी ने हम सब बच्चों की पिटाई लगाई वो अलग।
सर्फ_एक्सेल का ऐड देखा तो पिछले साल की एक घटना ज़हन में आ गयी।
पार्वती जी वहीँ बैठी सोचती रहती हैं। यह मुंड किसके हैं फिर उठ कर मंच पर चलते हुए कहती रहती हैं, "किसके मुंड हो सकते हैं"
उन्हें आते देख प्रियतमा भी गाने लगी- "अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूँघट पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे........"
. जी हाँ ऐसी मिठास घुली रहे रंगों की हर घर में।