घर पहुँचकर उसने रोज़ की तरह अपनी डायरी में अपने दिन के बारे में लिखा।
खेल-खेल में जयपुर से आई काठ की हांडी को चावल-पानी डालकर चूल्हे पर चढ़ा दी थी।"
माँ ने कहा इसे तुम अपनी ताकत बना दो खुद ही अपना मज़ाक उड़ाना शुरू कर दो
लेखक: अलेक्सान्द्र रास्किन ; अनुवाद: आ। चारुमति रामदास
बाद मुद्दत के भी कोशिश यूँ जारी है, राख़ के ढेर में दबी ज्यूँ कोई चिंगारी है।
अपनी लड़ाई भूलकर प्रधानमंत्री के भाषण के बारें में ढेर सारी तरह तरह की बातें करने लगे।