जब डैडी छोटे थे - 14
जब डैडी छोटे थे - 14


जब डैडी छोटे थे तब वो खूब ज़्यादा बीमार रहते थे। बच्चों की ऐसी कोई भी बीमारी नहीं थी, जो उन्हें न हुई हो। उन्हें खसरा हो चुका था, गलसुए हो चुके थे, और काली खाँसी भी हो चुकी थी। हर बीमारी के बाद कॉम्प्लिकेशन्स हो जाते थे। और जब तक वे दूर होते, छोटे डैडी को नई बीमारी हो जाती।
जब उन्हें स्कूल जाना था, तब भी छोटे डैडी बीमार पड़े थे। जब वो ठीक हुए और पहली बार स्कूल गए, तब तक सारे बच्चों ने बहुत कुछ सीख लिया था। वे सब एक दूसरे को अच्छी तरह पहचानते थे, और टीचर भी उन सबको अच्छी तरह जानती थी।
मगर छोटे डैडी को कोई नहीं जानता था। सारे बच्चे उनकी ओर देख रहे थे। ये बहुत अजीब लग रहा था। ऊपर से कुछ बच्चे जीभ निकाल कर उन्हें चिढ़ा भी रहे थे।
एक लड़के ने उनके रास्ते में अपनी टाँग अड़ा दी। छोटे डैडी गिर पड़े। मगर वो रोए नहीं। उन्होंने उठकर उस बच्चे को धक्का दिया। वह भी गिर पड़ा। फिर उसने भी उठकर छोटे डैडी को धक्का दिया। छोटे डैडी दुबारा गिर पड़े। वो फिर भी नहीं रोए। उन्होंने उस बच्चे को फिर से धक्का दिया। इस तरह, शायद, दिन भर वे एक दूसरे को धक्के ही मारते रहते। मगर तभी घंटी बजी। सब बच्चे क्लास में गए और अपनी अपनी सीट पे बैठ गए। मगर छोटे डैडी की तो कोई सीट ही नहीं थी। तो, उन्हें एक लड़की के पास बिठाया गया। पूरी क्लास हँसने लगी। वो लड़की भी हँसने लगी।
छोटे डैडी का रोने का मन होने लगा। मगर फ़ौरन उन्हें भी ये बड़ा मज़ाहिया लगा, और वो ख़ुद भी हँसने लगे। तब टीचर भी हँसने लगी। उसने कहा:
“शाबाश! मुझे तो डर था कि तू रोने लगेगा।”
“मैं भी डर गया था,” डैडी ने कहा।
सब लोग फिर से हँसने लगे।
“बच्चों, याद रखो,” टीचर ने कहा, “जब तुम्हारा रोने का मन करे, तो मुस्कुराने की कोशिश करना। ये तुम्हें ज़िन्दगी भर के लिए मेरी सलाह है! तो, चलो, अब पढ़ाई करते हैं।”
उस दिन छोटे डैडी को पता चला कि वो क्लास में सबसे अच्छा पढ़ते हैं। मगर साथ ही ये भी पता चला कि उनकी लिखाई सबसे बुरी है। जब ये पता चला कि वो क्लास में सबसे ज़्यादा बातें भी करते हैं, तो टीचर ने ऊँगली से उन्हें धमकाया।
वह बहुत अच्छी टीचर थीं। वो सख़्त भी थी और ख़ुशमिजाज़ भी थी। उनकी क्लास में पढ़ना बेहद दिलचस्प था। उनकी सलाह छोटे डैडी ने ज़िन्दगी भर याद रखी। ये उनका स्कूल का पहला दिन था। फिर तो ऐसे बहुत सारे दिन आए। और, छोटे डैडी के स्कूल में कित्ती सारी मज़ेदार, और दुखभरी, अच्छी और बुरी घटनाएँ हुईं! मगर ये सब किसी दूसरी किताब में आएगा। हो सकता है, मैं कभी उसे लिखूँ।
अलविदा, बच्चों।