"आजकल की लड़कियाँ भी न ..अरे हम तुम्हारी उम्र के थे तब हवा की तरह उड़ते फिरते थे। मजाल तो थी किसी को शिकायत का मौका भी देत...
"तुम खाना बनाओगी। मैं सुखा देता हूँ।"राकेश ने पत्नी रचना से कहा तो सास का मुँह फूल गया।
हम बेटियों को लक्ष्मी का रूप मानते है और बहू का गृह प्रवेश लक्ष्मि रूप में ही करवाते है तो जो कपड़े पहने बेटी को देख सकत...
नीता की सास रूढ़िवादी थी जबकि नीता आधुनिक जीवन शैली के साथ उदार थी।
एक बार फिर अष्टभुजा ने अपना रूप धारण किया
घर वालों को एक अच्छी बहू की जरूरत थी ।