बेवकूफी न कर समीरा! छोड़ आ जहाँ से लाई है इन सम्मानित समाज की औलादों को
लेकिन आज भी पूरा उत्साह है पीले रंग की ड्रेस पहनी है
जैसे नींद से जागे मास्टर जी छब्बीस जनवरी पर ग्राउंड मे बैठे आंसु पोंछ रहे थेl"
चढ़ाया गया प्रसाद सुगंधित होकर प्रभु को जाता है। भगवान को इत्र, हमें माँ।
सबके हाथों के छलकते हुए जाम इस सच्चाई की ठंड में जम चुके थे।
तब तक अड़ोसी-पड़ोसी सभी इकट्ठा हो चुके थे