नदी के दो किनारों से बहते यूँ तो आ गए पास कितने
आज आत्मा मुक्त हो गई, जैसे बनारस के मणिकर्णिका घाट पर किसी ने मेरे पाप जला दिए,
नहीं तुम ज़रूर आओगी मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा तुम्हें आना होगा।।
हम देहात से निकले बच्चे थोड़े अलग नहीं पूरे अलग होते हैं। अपनी आसपास की दुनिया में जीते हुए भी खुद को हमेशा पाते हैं थोड़ा...
डायरी पढ़ते-पढ़ते सुधार गृह से वापिस आए शुभम की आंखें बरबस ही छलक आई, बरबस ही पास के कमरे में सो रहे बीमार पिता से मिलने क...
रति ने मम्मी को देखा, सब मुस्कुरा रहे थे। हाँ कहकर नजरें नीचे और मुस्कुरा दी...सबकी आँँखों में खुशी के आँसू थे।