मैं आखें खोल दी हिम्मत की कुंडी खोल दी दरवाजा अब खुला है. मैं आखें खोल दी हिम्मत की कुंडी खोल दी दरवाजा अब खुला है.
देता है शक्ल नज़रिए को ज़हन बन के दस्तकार देता है शक्ल नज़रिए को ज़हन बन के दस्तकार
पगडंडियों के उन ख़ूबसूरत मोड़ पर ज़रा पलटकर शायद अपने ही बचपन को फिर से निहार पाऊंगी… पगडंडियों के उन ख़ूबसूरत मोड़ पर ज़रा पलटकर शायद अपने ही बचपन को फिर से निहार...