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dr vandna Sharma

Others

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ज़िंदगी मेरी परीक्षा लेती रही

ज़िंदगी मेरी परीक्षा लेती रही

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ज़िंदगी मेरी परीक्षा लेती रही

कभी गिरती मैं कभी उठती रही

बस एक कसक दिल में यही रही

समझा क्यों नहीं किसी ने मन को मेरे

क्या इसमें भी गलती मेरी रही

सिर्फ देना और देना सीखा मैंने

लेने की चाह कभी न रही

फिर भी मिली बेरुखी और तन्हाई

क्या इसमें में भी गलती मेरी रही

लाख गहरा हो सागर सही

पर मेरे मन की धरती प्यासी रही

आयी घटा घिर के ,बादल भी खूब बरसे

आंखियाँ मेरी भी बरसती रही

क्या इसमें भी गलती मेरी रही

ज़िंदगी मेरी परीक्षा लेती रही

कभी गिरती मैं कभी उठती रही


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