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Kapil Jain

Others

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ज़िन्दगी जी लेता हुं

ज़िन्दगी जी लेता हुं

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इक कुम्हार की तरह,
हर रोज़ गढ़ता हूँ..
तुम्हारे ख्यालो के शब्दों को...
और इक नयी अकृति देता हूँ...
भले ही वक़्त गुज़र रहा हो,
हमारे रिश्ते का...
मैं कुछ ना कुछ,
तुममे नया ढूंढ ही लेता हूँ...
मैं हर रोज़...
तुम्हारे एहसासो को पढ़ता हूँ,
खामोश रहती तुम पर,
मैं सारे ऱाज़ समझता...
भले ही इक वक़्त के साथ,
कुछ कमज़ोर हो गयी हो,
मेरी नज़र पर,
मैं तुम्हारी आँखों में...
कुछ धुंधला सा पढ़ ही लेता हूँ....
मैं हर पल तुम्हारे साथ,
गुज़रे लम्हों को संजोता हूँ,
वक़्त तेज़ और तेज़ बढ़ता ही जाता है,
फिर भी...मैं कलाई पर,
घड़ी की तरह बांध लेता हूँ..
भले ही..
अरसा गुज़र रहा हो,
उन लम्हों का..
पर मैं तुम्हारे साथ...
इक-इक लम्हे में,
कई ज़िन्दगी जी रहा हूँ...
इक कुम्हार की तरह,
हर रोज़ गढ़ता हूँ..
तुम्हारे ख्यालो के शब्दों को...
और इक नयी अकृति देता
भले ही वक़्त गुज़र रहा हो,
हमारे रिश्ते को...
मैं कुछ ना कुछ,
तुममे नया ढूंढ ही लेता हूँ...
ए ज़िन्दगी
मे तुझे जी ही लेता हुँ....


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