यूँ ही
यूँ ही
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यूँ ही पंख लग जाते हैं
जब हम कामनाओं के
बोझ से मुक्त हो लेते है।
विचरते हैं
उन्मुक्त आकाश में
परिंदों की तरह।
महकते हैं फूलों की तरह
चले आते हैं
तुम्हारे पास
और तुम अनजान से
रह जाते हो
मेरे अपने पास होने से।