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Jyotshna Rani Sahoo

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Jyotshna Rani Sahoo

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युद्ध

युद्ध

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अब जब तुम युद्ध के मैदान पर उतरे हो

बड़े ही उत्साह से 

अपनी शालीनता को दबा कर

बिगुल बजा कर उसकी घोषणा कर रहे हो

अपनी दया क्षमा मोह माया सबको

दिल के गुप्त कमरे में ताला लगाकर 

कुछ घमंड के अस्त्र के सहारे 

जीतने कि लालच रख कर

और सोच रहे हो लाशों के ढेर बिछाओगे,

उनपे चढ़ कर उच्च सिंहासन हासिल करोगे?


जिस सिंहासन के ऊपर राजा से लेकर प्रजा तक

धनी से लेकर रंक तक

सामर्थ्य से लेकर असामर्थ्य तक

सामान्य से लेकर असामान्य तक

सब की नजर है

और तुम सोच कर बैठे हो वो बस तुम्हारा है

चाहे अपनों से भिड़ना पड़े

अपनी क्रूरता की परीक्षा देना पड़े

कुछ मासूमों की बली चढ़ाकर

आत्मग्लानि को जगा कर

अपनी विवेक को तलवार की नोकी में रख कर

विजय तिलक लगाना चाहते हो,


उसमें जीत जिसको भी हासिल हो

मौत तो इन्सानियत की ही होगी

लाशों के ढ़ेर पर अपने रोए ना रोए

भले ही उनकी वीरता के लिए सम्मानित कर के

बिरगती प्राप्त हो 

पर इन्सानियत छाती पीट कर रोएगी

क्यूंकी तब इंसानों की नहीं

इन्सानियत की मौत होगी।


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