यशोधरा का पत्र
यशोधरा का पत्र
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सिद्धार्थ तुम क्यों यूं मुझे,
चुपचाप अकेला छोड़ गए?
मेरी पीर का अंदाज़ है तुम्हें
अंतस मेरा चीर गए।
वेदना के संग-संग
क्रोध भी ज़रूर है
असमंजस के साथ
पाहन बोझ भरपूर है
कांपती उंगलियों से,
लेखनी उठाई।
हृदय विदारक भाव
एक कलम वही चलाई
यू अपने खून से खत लिखा मगर
ठिठक गई फिर यशोधरा
ना बनू राह का रोड़ा मगर,
पत्र जो लिखा, मगर भेजा नहीं।
