The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW
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Shakuntla Agarwal

Others

5.0  

Shakuntla Agarwal

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यादे

यादे

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दिन पँख लगा,

पखेरू से उड़ गए।

तन्हा रातें भी सज गयी।

यादें दिल के कोने में,

रह - रहकर हिचकोले लेती रही।

बचपन का अल्हड़पन,

वो छतों पे चारपाईयों पे कतार में सोना।

गप्पें लगाना, फ़िल्मी कहानियाँ सुनाना।

सुबह की लालिमा को देख,

मन - मयूर का नाचना।

सूरज का कनखियों से देखना,

लगता था जैसे कोई दुल्हन,

घूँघट में से झाँक रही हो।

लाल रँग के जोड़े में लिपटी,

अलसाई - अलसाई सी लालिमा,

फ़ैलने लगती थी चहुँ ओर।

पक्षियों का चहचहाना,

कोयल का कूँकना,

मुर्गी का बाग देना,

मयूर का पीहुँ - पीहुँ का गान,

जैसे समझा रहा हो,

आलस छोड़ो, काम पे दौड़ो।

पक्षियों का कोलाहल,

अपने नीड़ों से निकल,

पंक्तियों में चलना।

संदेश देता था अनुशासन का।

वो बर्फ़ के गोले पे झपटना,

काले - खट्टे की चुस्कियाँ बनवाना,

चुस्कियाँ ले - लेकर चूसना,

शहतूत के पेड़ पर चढ़ना,

झोली में शहतूत भरना,

ऊपर से ही कूदना,

सारे जहाँ की नियामत थी हमारे पास।

लगता था हमसे बड़ा कोई शहज़ादा,

शायद ही कोई हो इस जहाँ में।

कम पैसों में भी ज़िन्दगी की,

सारी खुशियाँ खऱीद लेते थे हम।

अब अलमारियाँ पैसे से भरी है,

खुशियाँ कोसों दूर है।

अब ना वो लालिमा,

ना पक्षियों का चहचहाना,

अब अनिन्दा आँखों से ही सोते है,

और अनिन्दा आँखों से ही जाग जाते है।

ना खो - खो, ना रस्सी कूदना। 

ना सितोलिया, ना कबड्डी, ना चौपड़,

ना स्तापू, ना कंचे, ना गिल्ली - डंडा,

बरसातों में कश्तियाँ बनाना और,

बहते नालों में चलाना,

छपा - छप छपाक से नहाना।

फ़िर मस्ताना।

स्विमिंग पूल बन जाता था चहुँ ओर।

अब तो नाम भी धुंधलाने लगे है।

लगता है खेल भी हमारे साथ बुढियानें लगे है।

यादों का भँवर जब आता है,

हमें अपने साथ बहा ले जाता है।

लहरों पे हिचकोले खातें हम,

"शकुन" पहुँच जाते है,

भूली - बिसरी

ना भूलने वाली यादों में।


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