वसंत ऋतु की प्रथम कोपल
वसंत ऋतु की प्रथम कोपल
नैसर्गिक बीज एक नील गगन से
पहला जब वसुन्धरा पर टपका,
माटी की नमी से सिंचित हो वह
ध्रुतगति से निकसा- चमका,
प्रकाश की सुक्ष्म उर्जा- उष्णता
माटी से मिला पोषण संचित कर,
प्रथम अंकुरण बड़भागी वह पाया
अहोभाग्य, पहली कोंपल फूटी!
लगा खोजने पादप नियंत्रक को
पर वह नहीं कहीं मिल रे पाया,
हर पल महसूस किया सन्निकट,
भगवान् शब्द उचर कर उसको
अपना परम अराध्य उसे बनाया,
मानव अवतरित हो उसे
हरि प्रसाद समझ कर खाया,
पर अराध्य को पत्थर में
जीवंत कर बैठा कर आह!
जल-पुष्प-अक्षत-तांबूल से
नित दिन पूजन में उसे चढ़ाया,
अंत काल में हरिनाम वह बिसराया
हर वर्ष वसंत ऐसे ही आ भरमाया।
