वर्षा ऋतु
वर्षा ऋतु
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चारों तरफ हरियाली छाई
उष्णता जो फैली थी, वो कम हो आई,
नग्न डालों पर, महकी महकी कली खिल आई,
शांत आकाश में भी, बादलों ने हलचल मचायी,
नीरस से पड़े जीवन में, सरसता घुल आयी,
आग उगलती थी धरती भी, उसमें भी शीतलता आई,
अस्तित्व खो रही थी नदियाँ, फिर नवजीवन से संचित हो आयी,
नहीं है कोई ऐसा प्राणी, जिसके मन को ये ऋतु ना भाई,
चारों तरफ हरियाली छाई।