"वर्षा रानी "
"वर्षा रानी "
वर्षा रानी तुम जल्दी आओ ना
मन को शीतल कर जाओ ना
सब प्राणी है व्याकुल बिन आप
मिटाओ इस जग से सूखे का श्राप
बिन तेरे हरियाली है गायब
सब राह देख रहे हैं शायद
सूखे कंठ की प्यास बुझाओ ना
वर्षा रानी जल्दी आओ ना।।
रिमझिम फुहारे लगती कितनी सुंदर
मन को शांति मिलती है अंदर ही अंदर
गरज गरज कर बरसो
चाहे टिप टिप बरसो
या मूसलाधार बरस जाओ
मन को यूं ही ना तड़पाओ
तन को तरबतर कर जाओ ना
वर्षा रानी तुम जल्दी आओ ना।।
लगता है बरसे बरस हो गया है
मन ही मन मिलन को तरस गया है
अब तो गर्मी ले लेगी जान
आने को तुम जाओ अब मान
मृत प्राय सा है लाखों प्राणी
खोज में है जीवन विज्ञानी
प्यासे के लिए अमृत की धार बन जाओ ना
वर्षा रानी तुम जल्दी आओ ना।।
