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Dr. Chanchal Chauhan

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वृन्दावन

वृन्दावन

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श्याम की बाँसुरी राधा की पायल

से जब गुँजायमान होता है यहाँ

 तब इस धरा पर स्वर्ग होता है

झूमती है प्रकृति यहाँ 

तब बसंत चहुँ ओर होता है

राधाकृष्णमय हो जाता है सब

खो जाती हूँ मैं उस धुन में 

छोड़ अपनी सुध बुध यहाँ

यहाँ हर कोई है मस्त 

यहाँ हर कोई है बेसुध

यहाँ मानव से पशु पक्षी तथा प्रकृति चहूँ ओर 

बस चारों ओर राधाकृष्ण राधाकृष्ण

ऐसा ही है मेरा धाम वृन्दावन धाम

यहाँ की पावन धरा के लिये 

तरसते सुर असुर मानव दानव

ऐसा है चारों धामों से निराला वृन्दावन

जहाँ आज भी राधा की पायल की झंकार

और कृष्ण की बाँसुरी की धुन विधमान है प्रकृति में

विरले ही आसक्त ही सुन सकते है

यह धुन अनन्तर धुन ।

बस राधा कृष्ण सिर्फ राधा कृष्ण।।

 


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