वो समझते हैं हम
वो समझते हैं हम
वो समझते हैं हम उन पर वार जायेंगे
वो समझते हैं हम उनसे हार जायेंगे
गालियां देते देते थक जायेंगे हमे वो
हम तो वो हैं , जो सच् से पार जायेंगे !
इतनी गैरत नहीं, फिर ज़माने का क्या
इतनी फुरसत नहीं, फिर बहाने का क्या
आरजू अब क्यूँ करो, जो गर ठान लिय़ा
इतनी मिन्नत नहीं, फिर ठिकाने का क्या !
काश पहले ही, उसे पहचान लिय़ा
फितरत भी उसकी पहले जान लिय़ा
हम तो हम है, उसकी बातों का क्या
खाक कर देंगे, ऐसा अब मान लिय़ा !
कोई कितना भी सिकन्दर बने खुद को
साजिशों का भी समन्दर बने खुद को
इतनी आग सीने मे जलाये रखते हैं हम
आग की बाढ ला देंगे ज़लाकार खुद को !
जब तक नहीं है रंज ज़िन्दगी से रब
काट कर जीत रहे हैं बन्दगी से सब
उनकी ज़िद को मिट्टी मे मिला छोडेंगे
तब तक नहीं हैँ तंज ज़िन्दगी से रब !!
