वो साथी पुराने
वो साथी पुराने
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ना ही बनाता है अब कोई कागज़ की
कश्ती और ना ही कोई बारिश में भीगता है
वो साथी हमारे ना जाने कहाँ खो गए जिनको
लगता था सुहाना ये बारिश का मौसम
जब से सब बड़े हो गए है सब के शौक बदल गए है
जब भी गिरती है बारिश की बूंदे वो साथी पुराने याद
आ जाते है
जाने कौन सी भीड़ में खो गए वो सब मेरे बचपन के साथी
हम चाह कर भी उनको नहीं ढूंढ पाए
काश वो हमको फिर से मिल जाये
काश लौट आये फिर वो बचपन का ज़माना और
वो साथी तो फिर से जी ले कुछ पल सुकून के...