वो मेरा मिट्टी का घर
वो मेरा मिट्टी का घर
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वो मेरा मिट्टी का घर
मेरे आंगन की चारपाई
वो पीपल का पेड़
फिर चलती पुरवाई
वो फूलों का बगीचा
और लह-लहाते खेत
वो मिट्टी की क्यारी
फिर नदी की रेत
वो कुएँ का पानी
मिट्टी की सुराही
पीता था आ कर
वो चलता हुआ राही
वो गाँव के मेले
सावन के झूले
वो सर्बत का गोला
और चाट के ठेले
याद करता हूँ अब भी
उस मिट्टी के घर को
उस प्यारे सफर को
उस मीठी डगर को
