STORYMIRROR

Vigyan Prakash

Others

2  

Vigyan Prakash

Others

वो आँखें

वो आँखें

1 min
339

वो आँखें,

जिन्हें,

मेरा दर्पण बन जाना था।

जिनका जिक्र कर,

मैं सबको अपनी,

कविताओं का दीवाना,

बना लेना चाहता था।


वो निगाहें,

जो कभी हमें देखती,

तो जैसे सवालों के जवाब,

मिलने लगते मानो,

और फिर अपना होना,

ये अस्तित्व,

ये सवाल सब बेमानी,

हो जाते।


बस उन दो आँखों के कारण,

जो शायद उस ख़ुदा की,

सबसे खूबसूरत तहरीर है।


Rate this content
Log in