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Bhãgyshree Saini

Others

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Bhãgyshree Saini

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वज़ह चाहे कोई भी हो

वज़ह चाहे कोई भी हो

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वजह चाहे कोई भी हो

परिवार की टूटती डोर जैसे

संभल सी गई हो।

व्यस्त जीवन में परिवार से संबंध

जैसी टूटने सा लगा था।

वज़ह चाहे कोई भी हो...

जहां एक परिवार एक पल भी

साथ ना हो पाता था।

वहीं आज घंटों साथ बिताने लगे

रिश्तो में जैसे फिर से मिठास घुल गई हो

वज़ह चाहे कोई भी हो......

जहां हमारी धरती पर प्रदूषण की

चादर बिछ गई थी

वही आज सुगंधित हवाएं बहने लगी

जहां चंद्रमा के पास चमकता शुक्र तारा

प्रदूषण में कहीं छुप गया था

वही आज पुनः चमक उठा है

वज़ह चाहे कोई भी हो 

महमारी हो या फिर कुछ और।।


    



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