विवाह
विवाह
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बन्धन है यह प्रेम का, बनते हैं संस्कार।
दो मानव का मेल हैं, इनसे हैं संसार।।
साथी प्रेम पवित्र है, जन्म-जन्म का साथ।
पति पत्नी अब संग में, देख मिलाते हाथ।।
सुख पाते दाम्पत्य में, जीवन की शुरुआत।
आदि काल की रीत है, प्रेम स्नेह बरसात।।
यह तो रीति रिवाज है, नाम मिला संस्कार।
करते कन्यादान हैं, कभी नहीं व्यापार।।
नाता है अंजान से, जुड़कर बने विवाह।
है सोलह संस्कार में, बँधे प्रेम की राह।।