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Arpan Kumar

Others

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Arpan Kumar

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विरोधी दुनियाओं बीच

विरोधी दुनियाओं बीच

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गाँव से कुछ दिन पहले ही

दिल्ली लौटा हूँ

जाने क्यों

गाँव  का ठहराव 

मुझे बेचैन कर देता है

और दिल्ली जैसे महानगरों की

नुकीली दौड़ से पैर

चुभते भी ख़ूब हैं

गाँव की आत्मीय पुकारों से

उत्साहित नहीं होता चेहरा

जबकि शहर की

घूरती निगाहों में

मेरी आँखें

घूँट पीना चाहती हैं

परिचय और प्यार  की

इस उभ-चुभ में पड़ा मन

शायद गति बन जाता है

मेरे पैरों की

 

बुनता हूँ

अपना व्यक्तित्व

हर रोज़

हरीतिमा और कांक्रीट के

इन उलझे ताने-बानों से

.....


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