STORYMIRROR

Jyoti Agnihotri

Others

3  

Jyoti Agnihotri

Others

विरह

विरह

1 min
329

ऐ कवि! तुम फिर से

एक विरह गीत रच दो,

हो सके तो कोरे कागज़ पे

फिर से विरह की स्याही मल दो।


दो शब्द फिर कुछ ऐसे कि

मेरी भी आत्मा उनमें,

उनमें भर जाए कि

कहीं मेरा मैं ही न मुझे छल जाए।


आत्मा की स्याही से कोरे कागज़ पे,

हो सके तो तुम खुद ही को मल दो।


ऐ कवि! तुम फिर से

एक विरह गीत रच दो,

हो सके तो कोरे कागज़ पे

फिर से विरह की स्याही मल दो।


जब जब कलम से तेरी

विरह गीत निकले हैं,

अरमान बहुत निकले

फ़िर भी कम निकले हैं।


हो सके तो विरहणी आत्मा को

मेरी उन्मुक्त कर दो,

काम और मोह की शालाखाओ को

ध्वस्त कर दो।


ऐ कवि! तुम फिर से

एक विरह गीत रच दो,

हो सके तो कोरे कागज़ पे

फ़िर से विरह की स्याही मल दो।


Rate this content
Log in