विनय।
विनय।
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मां तुम्हारी अर्चना के फूल ,मैं कैसे चढ़ाऊँ।
अति अपावन मन वचन मम, किस तरह विनती सुनाऊँ।
आस छल बल की रही ,विश्वास चरणों में ना लाया।
हे दयामयी आज तक, हिय में नहीं तुम को बसाया।।
प्रेम हीन मलीन उर अब सामने करते लजाऊँ,।।माँ।।
घोर तिमिराच्छन्न अंतर, भ्रमित माया में निरंतर।
नित्य बोझिल कर रहे उर मोह ,मद, अज्ञान, मत्सर।।
परम पावन पद पदम् में ,अधम सिर -कैसे झुकाऊँ।।माँ।
मातु वर दो अब तुम्हारा प्रेम , उर में छल छलाये ।
विकल विह्वल नैन निर्झर ,अर्ध्य चरणों में चढ़ाये ।
पद पदम् पियूष पी पी,तम तपन अपनी मिटाऊँ ।।माँ।।
