विद्यालय की यादें
विद्यालय की यादें
न कोई थी चिंता न फिक्र कल की
बेफिक्र जीवन चले जा रहा था
कॉपी के पन्नों से नाव बना कर
वह बारिश के पानी में तैरा रहा था
क्या लाए हो तुम टिफिन में तुम्हारे
पहले ही घंटे में सब यह पुकारें
शिक्षक की नजरों से बचते बचाते
इक दूजे का भोजन सब थे चुराते
सुरक्षा अपने टिफिन की बढ़ा कर
मित्रों के डिब्बे से वह खा रहा था
गृहकार्य मैंने किया तो था टीचर
कॉपी भी बस्ते में कायदे से रखी
बहन मेरी छोटी बड़ी ही वो चंचल
उसी की शरारत है मुझको ये लगती
होगी निकाली उसी ने छुपा दी
बेकार का राग वह गा रहा था
बनूँगा बड़ा आदमी एक दिन मैं
आँखों में सुन्दर से सपने सजे हैं
पढ़ने जो बैठे तो आँखें हैं बोझिल
नहीं तो भला नींद आती किसे है
कहानी को अपनी किताबों में रखकर
खुद को ही धोखा दिए जा रहा था।
कितने सुहाने थे दिन वह सुनहरे
अब वह बड़ा है खोया वह बचपन
इशारों इशारों में वह भी तो बीता
नादान सा जो था उसका लड़कपन
अब है भटकता जूतों को घिसता
तलाश नौकरी की किए जा रहा था।
