विदाई
विदाई
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जब कोई चाहने बाला
चला जाता दूर कहीं
बार बार याद आता
विदा कब होता है
अनेकों बहाने
आते रोज जीवन में
पढाई के लिये दूरी
धनार्जन के लिये दूरी
बेटी का गमन निज जीवन में
बुजुर्ग का परलोक गमन
विदाई तो नहीं है
मन में बसे का चिंतन बार बार
विदाई कैसे है
गोल गोल दुनिया में
बिछड़े मिलते जरूर एक बार
राधा कृष्ण भी मिले थे
राम सीता का भी मिलन
परलोक यात्री की बार बार शिक्षा याद आना
सभी बिछड़े मिलते हैं
फिर विदाई तो
रंगमंच का अभिनय सा
यथार्थ से अलग
विषय कल्पना का.
