वह अजनबी
वह अजनबी
कभी-कभी एक प्यार भी
अजनबी की तरह ही मिलता है,
यह बात है आज से 5 साल पहले की,
मैं एक शाम उस बगीचे से गुजर रहा था,
एक अजनबी लड़की से मैं टकरा गया,
फिर हम दोनों एक दूसरे को सॉरी
बोल रहे थे,
अचानक से वह गुस्से में बोली
तुम्हें दिखाई नहीं देता क्या,
फिर मैंने कहा अगर तुम्हारा
ध्यान फोन से हटे तभी
तुम्हें कुछ दिखाई देगा ना,
मुझे बोलने से पहले खुद के
गिरेबान में भी तो झांक कर देख लो,
ग़लती तुम्हारी है और मैं सॉरी बोलूं,
फिर वो झगड़ने लगी फिर
मेरे एक दोस्त ने आकर यह
झगड़ा खत्म किया,
अगले दिन उसी बगीचे में मेरी मुलाकात
वापसी उस अजनबी लड़की से हुई,
सामने से आकर उसने अपनी ग़लती
कबूल की और मेरे से हाथ मिलाया,
फिर हमारी दोस्ती हो गई,
हम रोजाना उसी जगह पर मिला करते ,
हम लोग वही मिला करते,
एक दिन उसने अचानक मुझे कहा,
मुझे कैंसर है अब मैं ज्यादा दिन की
मेहमान नहीं हूं,
मैं अपने घर जाने वाली हूं ,
अब मैं तुमसे नहीं मिल सकती ,
हम अजनबी थे और अजनबी की तरह
रहकर खुश रहें,
इतना ही कह कर,
वह मेरी जिंदगी से अजनबी बन कर चली गई ,
ना उसने कभी अपना नाम बताया सच्चा ,
ना कभी कुछ कहा बस ,
हम एक अजनबी दोस्त की तरह रह गए जिंदगी में.