वाह वाह सृजन
वाह वाह सृजन
कुछ पल समय बिताने की थी मजबूरी,
साहित्यिक सृजन में कर लिया उत्पन्न रुचि।
थाम लिया तब हाथों में अपनी लेखनी,
लिखने लगी, जो भाव मन में उमड़ने लगी।
लिखते लिखते जब लेखनी पैनी होती गई,
लिखने को कई साहित्यिक पटलों से जुड़ी।
हर दिन लिखने को उपलब्ध मैं होती रही,
दिए गए विषय पर बेबाक सृजन करती रही।
फिर कलमकारों की नजर में खटकने लगी,
मेरी बेबाक लेखनी असहनीय लगने लगी,
मेरे फन को कुचलने के लिए कमर कस ली,
नकारात्मक टिप्पणियां अब दी जाने लगी
देखकर नकारात्मकता छोड़ा बेबाक लेखन,
अब लिखती वही जो होता वाह वाह सृजन!