उपयोगितावाद की महिमा
उपयोगितावाद की महिमा
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आँखें झड़ रही हैं जिनसे
स्नेह-सुधा
तुम्हारे लिऐ
पलक झपकते ही
बुन देंगी
अभेद्य कोई जाल
तुम्हारे चारों ओर
चौंको मत
ये व्यावहारिक लोग हैं
तुम हुऐ 'मिसफिट'
अगर इनकी दुनिया में
इशारों से ही
उठा दिऐ जाओगे
इनके बैठकख़ानों से
और एक दूसरे को
देखती इनकी पुतलियाँ
हँस देंगी
तुम्हारी अयोग्यता पर
तुम सिद्ध करना चाहोगे
बार-बार अपनी सार्थकता हालाँकि इनके बाज़ार में
कोई कबाड़ी भी
तुम्हारा कोई मूल्य
नहीं आँक पाऐगा
और हटना पड़ेगा तुम्हें
किसी उपयोग में
न आने वाले
मकान के
उस कोने से भी
जो सुरक्षित हैं
पहले से ही
जंग लगे लोहे और
रद्दी अख़बारों के लिऐ
