उदासी का सफर
उदासी का सफर
आँखों में सिर्फ पानी की गंगा है,
दिल में ना जाने कौन सी शंका है,
ना हम से कोई रुठा है,
उदासी का सफर है छाया,
ना जाने राह में कैसा मोड़ है आया,
धूप में तपती हूं मैं,
तारे गिन गिन कर सोती हूं मैं,
ना गम के बादल है ,
ना खुशियों की बारिश,
ना जाने चेहरे पर किस बात की उदासी है
ना मुझसे कोई झगड़ा है,
फिर भी क्यों चुप सी हूं मैं,
ना किसी ने दिल तोड़ा है,
ना किसी ने रिश्ता जोड़ा है,
मेरी आत्मा तो मेरे पास है,
फिर क्यों उदास सी हूं मैं,
यह सफर अंजाना सा लगता है ,
यह गलियां अब सुनी सी लगती है,
यहां साइकिल के रिंगटोन की कमी सी लगती है,
यहां सब कोई आवारा सा लगता है,
खेतों में फसल लहराती तो है,
वह हरी-भरी घास सूखी सी लगती है,
मौन रहने को मन करता है,
लेकिन अंदर से ज्वालामुखी बाहर निकलता है,
आग का लावा अंदर से जलता है,
लेकिन बम के विस्फोट में अभी तक नमी है,
ना जाने आंखें के राहो को तरसती है,
आसमां की गोद में सर रखकर ना जाने क्या गुनगुनाती हूँ,
तितली की तरह पंख फैलाकर एक डाल पर जा बैठती हूं,
उदासी का सफर ना जाने कब खत्म होगा,
यही तिगड़म लगाती हूं।