तूफ़ान।।
तूफ़ान।।
कल आया फिर इक़ तूफ़ान
लील गया एक पेड़ की जान
जिसे मैंने एक पौधे से
बड़ा पेड़ बनते हुए देखा,
कुछ राहगीरों को इसकी
छाँव में रुकते हुए देखा,
पंछियों को इस की डाल पर
शरण लेते हुए भी देखा,
बहुत रोये थे सब परिंदे कल
मैंने परिंदों को रोते हुए देखा,
किसी गाड़ी को इसकी देह को
बेरहमी से खींचते हुए देखा,
किसी कर्मी को यह कहते
सुनते हुए देखा कि इस की
जड़ में कीड़ा लगा था सो
इसको गिरते हुए देखा,
इसी तरह इन्सानों की
जड़ में भी लग जाते हैं कीड़े
जैसे अहंकार का कीड़ा,
लोभ का कीड़ा,
क्रोध का कीड़ा,
ईर्ष्या का कीड़ा,
शक का कीड़ा,
मोह का कीड़ा,
और फिर ज़िन्दगी में
भी आते रहते हैं छोटे मोटे
तूफान और इस पेड़ की तरह
टूट जाते हैं इन्सान।
टूट जाते हैं इन्सान।।