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Dr Priyank Prakhar

Others

4.4  

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तू ना पहनेगी चूड़ी

तू ना पहनेगी चूड़ी

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करे बेटी ने कुछ प्रश्न एक दिन,

बिन रुके बिन खोए कोई पल छिन,

बड़ी होकर क्या मैं तुम्हारी तरह दिखूंगी?

छोड़ फ्रॉक क्या मैं साड़ी पहन फिरूंगी?

जैसे तुम संवरती हो क्या मैं भी संवरूंगी?

बोलो क्या मैं भी ऐसे ही सिंगार किया करूंगी?


क्या फिर मेरे खिलौने सारे छिन जाएंगे?

नहीं मिलेंगे गुड्डे गुड़िया क्या ऐसे भी दिन आएँगे?

क्या मुझ को भी करना होगा चूल्हा चौका?

या मिल सकता है कुछ और करने का मौका,

बोलो तो मां मैं और क्या क्या करूंगी?

क्या तुम जैसे ही मैं नित रूप नए धरूंगी?

कितना कुछ तुम सबके लिए करती हो,

सहके सब फिर भी शांत जैसे धरती हो।


बोलो ना क्या तुम जैसे ही मैं भी खटूंगी?

हर मुश्किल में मैं तो बस नाम तेरा रटूंगी?

क्या हर लड़की के जीवन का अंत यही है?

मुझे नहीं पता, पर तुम बोलो ये कितना सही है?

जैसे तुम पिटती हो क्या मैं भी पिटूंगी?

तुम सिसकी जीवन भर तो क्या मैं भी सिसकूंगी?


प्रश्न अबोध थे उसके, पर सोच भारी थी,

बेटी थी वो मेरी मुझ को प्राणों से प्यारी थी,

उसके लिए ही तो मैं चुप रहती थी,

सब कुछ बस आँखें मूंदे सहती थी,

चुप्पी नहीं देनी है विरासत में मुझ को,

रखना नहीं मेरे सपनों की हिरासत में तुझ को,

तेरी अपनी राह खुद तुझे बनानी है,

तेरी मां की छांव भी ना तुझ पर आनी है,

तू बेटी है मेरी, बेशक मेरे जैसी ही होगी,

मैं आग दिए की, पर तू दहकती ज्वाला जैसी होगी,

मैंने सह ली, तुझ को ना विपदाएं कोई सहनी है,

तू ना पहनेगी चूड़ी, जो मैंने आज पहनी है।



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