Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Kanchan Jharkhande

Others

5.0  

Kanchan Jharkhande

Others

तुम्हारा मौन होना

तुम्हारा मौन होना

2 mins
641


तुम्हारा मौन होना,

मुझे चुभने लगा है, तुम्हारा मौन

मुझे लगा था तुम्हारा

मौन होना स्वाभाविक है।

पर तुमने तो अपने जीवन का

उसूल बना लिया है इसे

तुम निर्णय कर चुके हो

की जीवन के सफ़र में जो

लोग तुम्हारी प्रशंसा करेंगे वे

तुम्हारे प्रिय होंगे 

वे जो आलोचनाऐं करेंगे 

तुम्हारे अप्रिय बनेंगे


तुम्हारे मेरे दरमियाँ एक नहीं

काफ़ी दफ़ा, उलझती रही

भावनाएं,

मुझे लगा था कि समय के साथ

सब ठीक हो जायेगा

मगर हम उलझते ही गये 

अनन्त तक,

इस बात का अफ़सोस रहेगा

काश तुम ही पूछ लेते

की मेरा रवैया क्यों बदल गया था

मुझे कौन सी बात से आघात हुआ


उस दिन सच में ऐसा क्या

वाक्या घटा था

जिस के चलते मैं हतप्रभ थी

जिसके चलते, मैं क्रोध में थी

जिसके चलते मैं थी निराश,

अंततः क्या वाक्यांश घटा था

उस दौरान,

या फिर तुम्हारे किसी क़रीबी ने

मेरे मन को आघात किया था

करी थी मुझसे तुम्हारी

आलोचनाएं

जिसके चलते मेरा विवाद हुआ

क्योंकि मुझे अस्वीकार्य था, 

कोई तुम्हारी चेष्ठा करें,

कोई तुम्हें अनुचित कहे,

कोई तुम्हारे अतीत की कहानी

सुनाकर मेरे वर्तमान को

प्रभावित करे


मुझे मंजूर नहीं कोई तुम्हारी तरफ

तक देखे,

मुझे चुभने लगी थी उन चरित्रहीन

लोगों की याचिकाएँ,

काश की तुमने पूछा होता

मेरे मन की पीड़ाएँ

काश की तुमने समझा होता

मेरे ह्रदय की वेदनाएँ

काश की तुमने रोका होता

मस्तिष्क की संवेदनाये

काश की तुमने पूछा होता

उस असत्य के पीछे का सत्य

काश की तुमने विश्वास न

किया होता

उस अविश्वासनिय पर


ऐसा भी क्या मौन रखना

मुझे आत्मग्लानि होने लगी

सब कुछ प्रवासी होने लगा है

तुम्हारे मौन ने मुझे बेसहारा 

कर दिया है,

कोई नहीं है, हमजोली मेरा

जिसके कन्धों पर सिर रख

आंसूओं की बूंद गिरा सकूँ

खुद की बाहों को झूला समझ

सिर रख रो लेती हूँ। 

आँखों से अश्क़ बहे

कोई गुफ़्तगू जब तेरी करे


एक जमाना गुज़र गया

मुझे ख़ुद में समंदर समेटे हुऐ

कुछ इस तरह से खलता है,

मुझे मौन तुम्हारा,

बोल निशब्द हो गये हैं,

शब्द बेघर हो चले हैं,

तो कौन तय करेगा 

नियति की सजा,

इस असमंजस में मैंने

खुद को प्रयाश्चित करना चाहा

और मांगनी चाही माफ़ी

मगर तुम्हारा मौन अक्सर

आड़े रहा,

अब मैंने छोड़ दी हैं, आशाएं

अब मैंने छोड़ दिया है, जीवन



Rate this content
Log in