टूटते जा रहा हूँ
टूटते जा रहा हूँ


मुझे पता नहीं
चल रहा है
की मैं टूटते
जा रहा हूँ ,
अपने ही हाथों से
छूटते
जा रहा हूँ,
खबर नहीं मुझे
ये क्या हो
रहा है,
ना जाने क्यूँ
ख़ुशियाँ छीन
रही है,
मैं रूठते
जा रहा हूँ,
मुझे पता नहीं
चल रहा हैं
की मैं टूटते
जा रहा हूँ !
ख़ुश हूँ
मगर ज़ख्म
बदन को कुरेद
रहे हैं,
खंजर कि तरह,
दिल की
सूखी जमीं
हो गई है
बंजर की
तरह,
जो अपने थे
वो आज
अजनबियों का
नक़ाब लगाए
हुये हैं,
ऐसा लग रहा हैं
मैं खुद से
खुद को
लूटते जा रहा हूँ,
मुझे पता नहीं
चल रहा है
कि मैं टूटते जा
रहा हूँ !