तरस गई
तरस गई
माँ, मेरे कान तरस गए,
तेरी सुरमई वीणा सुनने को।
तरस गई माँ तरस गई
जीवन का मधुर संगीत सुुनने को ।
प्रेम का वो गीत सुनने को
जहाँ सात स्वरों की सुरीली सरगम हो,
हर स्वर मिलकर गाथा गाता हो।
जहाँ हर स्वर की धड़कन मधुमय हो
और हर स्वर में प्रोत्साहन हो ,उल्लास हो।
जहाँ जीवन में हर क्षण आनंद उत्सव हो,
ढोल, ताशे, कांसे सब बजते हो
और डमरू की ताल पर सब थिरकते हो ,
जहाँ धरा से नभ तक सुरमई जीवन हो।
तरस गई माँ तरस गई
सात स्वरों के संगम को ।
प्रेम का वो गीत सुनने को
जहाँ प्रकृति नृत्य करती हो,
और कली उसके संग खिलती हो।
जहाँ पत्तों की सरसराहट भी संगीतमय हो
और हर जीव मगन-मस्त जीवनमय हो।
जहाँ सूूर्य भी किरणें बिखेेेेरता गौरवमय हो
और धरा का कण-कण सुरमई हो।
माँ, तेरी वीणा का ऐसा उत्साहित संगीत हो ।
सुख-शान्ति के स्वर प्ररज्जवलित हो
और प्रेम, प्यार, संयम के ताल-मेल से गीत गूँजित हो।
माँ,मेेरे कान तरस गए,
तेरी ऐसी सुुरमई वीणा सुुनने को ।