तरंगिनी
तरंगिनी
चंचल चपला, सुंदर सरिता
तेरी धारा बडी मतवाली है
ऐसे लहराती बलखाती
लगता इतराती ललना है
तेरा पात्र विशाल विहंगम है
ये पवित्रता का संगम है
हर चाल तेरी हृदयंगम है
तेरे बहने मे एक सरगम है
जलचर तुझमे जलक्रीडा करे
तू हर जन- जन की पिडा हरे
पशु-पक्षी भी तुझमे क्रीडा करे
खेती बाडी तू सिंचा करे
हे तरंगिनी, मनमोहिनी
तेरा पानी जैसे दर्पण है
अस्तित्व तेरा एक समर्पण है
मेरे शब्द तुम्ही को अर्पण है
तेरा पानी नहीं ये अमृत है
जीवो के लिये जीवनामृत है
तू है दाता और हम याचक
तू है माता और हम बालक
रवी की किरणे चरणो को तेरे
प्रतिदिन छू के गुजर जाती है
बहती हवा सरसर करती
तेरी ही आरती गाती है
व्यक्तित्व तेरा इतना महान कि
आग भी तुझसे डरती है
आकाश मे बादल थाली लिये
फूलों की वर्षा करते हैं
नावे तुझमे विहरती है
चप्पा-चप्पा घुम आती है
मानो जैसे कि बच्चा कोई
गोदी मे माँ की लिपटता है
पर जब तु क्रोधित होती है
विक्राल रूप धर लेती है
सब जीवो के बसेरो को
क्षणभर मे ध्वस्त कर देती है
हे शीतल, शांत, संयमित सरिता
आराधना तेरी करती हूँ
हम पे यू क्रोधीत ना हो
बस इतनी बिनती करती हूँ!