तरकीब
तरकीब




जिंदा हूँ या नहीं मैं
आँखें तो मिचने दो,
जीने की अब मुझे भी
तरकीब सोचने दो।
बाकी न अब रहा मैं
मुझसे तुम्ही सुनोगे,
लाने ख़रीद ख़ुशियाँ
खुद को तो बेचने दो।
ऐसा सवाल हूँ मैं
मेरा जवाब ना है,
गैरों से क्या बगावत
अपनों से पूछने दो।
इतना तुम्हें कहूँगा
झूठा न था मैं अब तक,
जो राज दफ़न उनसे
परदा तो खींचने दो।