तलाश-ए-सुकूँ
तलाश-ए-सुकूँ
नज़्म अपनी से दर–ओ–दीवार पर,
इक ख्याल लिख रहा हूं मैं,
तलाश-ए-सुकूँ की राह पर,
खुद को आज़मा रहा हूं मैं,
उस जलते हुए दिए की लोह से,
राह अपनी के मील को चमका रहा हूं मैं,
नदी के ठहराव को छोड़ कर,
समंदर की तेज़ लहरों को आज़मा रहा हूं मैं,
ललकते बचपन की थामी उंगलियों से दूर,
गर्म थपेड़ों की सुर्ख हवाओं से जूझ रहा हूं मैं,
चहचहाती चिड़ियों की खुशनुमा आवाजों से दूर,
शहर के शोर में छुपी चुपियों को महसूस कर रहा हूं मैं,
है यकीं कि साहिल को ढूंढ लूंगा एक दिन,
बस अपनी नाव को छेदे जाने से बचा रहा हूं मैं,
दर–ओ–दीवार पर बस अपने सफ़र का,
इक ख्याल लिख रहा हूं मैं।
