तीन पूँछों वाला
तीन पूँछों वाला
कौन न करता
बचपन में शरारत
शैतानी की तोड़ जाते हम सारे हद
न किसी की सुनते थे
न किसी को मानते थे
जो हमने ठाना
उस बात पर खुद सयाना
अगर हमारी हठ के सामने
पहाड़ भी आये,
वहीं का वहीं चूर हो जाये
डर तो बस अम्मा से था
बात बात पर
चूल्हे से जलती लकड़ी ले
भगाती थी
लेकिन हाँ,
दादी को पटाने का तरीका
हमें मालूम था
कुछ भी माँगो दे देगी
न दे तो वहीं
धूल पे लेट तमाशा करो
कचरे की पेटी खुद पे डालो
फिर भी तीर निशाने पे न लगे
तो मूठ भर भर नमक
सब्जी पे डालो
तब तो मिलेगा ही
दादी मेरी कमजोरी जानती थी
के इन तमाशों की वजह आइसक्रीम थी
एक दीन उसने
मुझे सुधारने के बहाने
एक किस्सा सुनाया
तीन पूँछों वाले किसी शैतान का
वो घुमता है धूप की छुट्टी में
आइसक्रीम वालों की डिक्की में
भूखा वो प्यासा
बच्चों को निगलने की आस में
एक पूँछ से आइसक्रीम देता
दुसरे से पैर पकड़ता
अगर बच्चा चिल्लाए
तो तिसरे पूँछ को
उसके मुँह में डाल देता
और चुपचाप से भाग जाता
यहीं तालाब में उसका घर है
वहीं बच्चों को पकाता है
बस यही कहानी सुननी थी
आइसक्रीम जो थी न्यारी
जग से मुझको प्यारी
बन गयी मेरी सातवीं बैरी
अब जब जब
किसी बच्चे को
आइसक्रीम के लिए रोता देखता
तेरी यादें मुझे रुलाती
दादी देख!
शरारत मैने छोड़ दी है
अब तू वापस क्यों न लौटती।
