तेरी मोहिनी मूरत
तेरी मोहिनी मूरत
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तेरी मोहिनी मूरत भायी मुझे
तेरी साँवली सूरत भायी मुझे
बस गुए श्याम मेरे नैनन में
छवि बस गयी देखो रे मन में।
तेरा मोर मुकुट कुण्डल सुंदर
है भाल तिलक,मुरली है अधर
है प्यारी अदा बांकी चितवन में
पनघट भटकूँ गलियन भटकूँ।
छुप गए हो किस वन कानन में
आऊँ कदंब तले यमुना तीरे
ढूंढती हूँ बृंदावन में
वो रास कहाँ वो बात कहाँ।
जो थी पहले बृज आँगन में
ये तेरी जुदाई न भाई मुझे
देखो पल-पल आये रुलाई मुझे
खत-खत लिख-लिख कूप है पाटे।
कब्जा संग है प्रीत लगाई तूने
और राधिका दी रे भुलाईतूने
आ जाओ मेरे गिरधारी
अब तो अखियां रो-रो हारी।
और न लो परीक्षा मुरारी।